भाग 106 पुरवा को अपने इतने करीब देख कर महेश के रग रग में खुशी की लहर दौड़ गई। उसने मुस्कुराते हुए अपने दोनो दोनों बाजुओं का घेरा बना कर कस लिया। पुरवा का चेहरा अपनी ओर उठाया तो उसने शर्म से अपनी आंखे बंद की हुई थी। होठों पर असीम संतोष था। बाहर आंगन की तपी हुई मिट्टी बारिश की पहली बौछार पा कर तृप्त हो अपनी सोंधी सोंधी खुशबू फैला रही थी। महेश भी पुरवा के दामन से लिपट कर अपनी आठ महीने की जुदाई का दर्द मिटा रहा था। एक दूसरे के साथ कैसे समय बीत गया