ढाबे की वो खाट सरकारी काम होने के कारण अहमदाबाद जाना बेहद ज़रूरी था। सीजन के कारण किसी भी ट्रेन में टिकट नहीं मिल सका था। तत्काल में भी कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। आखि़र हारकर एक स्लीपर बस का टिकट ले लिया। मुझे मालुम था कि बस की यात्रा इतनी आरामदेय नहीं हुआ करती है, लेकिन सरकारी काम के चलते यह सब कुछ तो सहन करना ही था। ठीक दस बजे स्लीपर बस अपने गन्तव्य के लिए रवाना हुई। पूरे चौदह घण्टे का सफ़र तय करना था इसी बस से, खैर - धीरे-धीरे सोने का प्रयास करने लगा।