दस्तक दिल पर - भाग 14 - अंतिम भाग

  • 2.9k
  • 1
  • 1.4k

"दस्तक दिल पर" किश्त-14हम दोनों वहाँ पर ख़ुद को जन्नत के बीच बैठे हुए महसूस कर रहे थे। उसने ‘कागज और कैनवस’ मेरी ओर बढ़ा दी और कहा "एक कविता आप पढ़िए।" मैंने कविता पढ़ी पर मैं कविता वगैरह से ज़्यादा जुड़ा नहीं होने के कारण सही से पढ़ नहीं पाया....कविता के भाव उजागर नहीं कर पाया। तब उसने कविता का भावार्थ बताया, उसने बताया कि जब प्रेम होता है तो कुछ और नहीं होता, सब कुछ यूँ नीचे ही रह जाता है जैसे पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है, और बादलों का रूप ले लेता है। प्रेम बिल्कुल वैसे