## 14 ## रात के बारह बजे, बारिश अभी थमी नहीं थी। मेंहदी अपने कमरे में टहल रही थी, मन खूब व्याकुल था। कुछ हालात और कुछ नजारों ने मेंहदी की आँखों से नींद चुरा ली थी। वह बहुत देर तक कमरे में टहलती रही। आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। डायरी खोलकर कुछ लिखना चाहा। मगर दिमाग साथ नहीं दे रहा था। कलम बंदकर फिर सोच में डूब गई। स्वागता नींद में थी। मगर अन्वेशा पलंग पर छटपटा रही थी। चेहरा कुछ परेशान, पसीने से सारा मुँह भीग रहा था। जैसे कुछ बुरा सपना देख रही हो। बेचैनी