================= क्षण भर बाद ही मुझे स्वयं पर अफ़सोस भी हुआ| सचमुच मैं पगला गई हूँ? अम्मा के बारे में कितनी नेगेटिव होती जा रही हूँ मैं? आखिर उन्होंने किया क्या है? यही न कि वे मेरी चिंता करती हैं | सबको एक साथी की ज़रूरत होती है | एकाकीपन को ओढ़ना-बिछाना किसे अच्छा लगता है भला ? अम्मा-पापा जिस उम्र में आ पहुँचे थे और मैं जिस यौवनावस्था को पार कर चुकी थी, उसमें उनका मेरे लिए चिंतित होना बड़ी सहज सी बात थी| पता नहीं प्रमेश को देखकर मेरे मन में उपद्रव सा क्यों होने लगा था ?