यमुना के किनारे पहुँचकर ध्रुव ने पहले दिन उपवास किया। और दूसरे दिन से वे विधिपूर्वक भगवान् की आराधना करने लगे। पहले महीने में तीन-तीन दिन पर कैथ और बेर के फल खा लेते तथा निरन्तर भगवान् के द्वादशाक्षर-मन्त्र का जप करते हुए भगवान् के चतुर्भुज रूप का ध्यान करते रहे। दूसरे महीने में हर छठे दिन सूखे पत्ते और कुछ तिनके खा लेते तथा प्रेम से भगवान् की आराधना करते रहे। तीसरे महीने में हर नवें दिन पानी पी लेते और चौथे महीने में तो उन्होंने जल भी छोड़ दिया, केवल वायु पीकर ही रहे। वह भी प्राणवायु इस