ढ़ाई अक्षर प्रेम के..

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पोथी पढ़-पढ़ जग मुवा, पंडित हुआ न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। हिंदी में जो शब्द है-प्रेम, उसमें ढाई अक्षर हैं; लेकिन कबीर का मतलब गहरा है,जब भी कोई व्यक्ति किसी से प्रेम करता है, तो वहांँ ढाई अक्षर प्रेम के पूरे होते हैं, प्रेम करने वाला-एक; जिसको वो प्रेम करता है वह-दो; और दोनों के बीच में जो कुछ अज्ञात है-वह ढाई,उसे कबीर आधा कहते हैं? ढाई क्यों? तीन भी तो कह सकते हैं ना,लेकिन ऐसा इसलिए है कि आधा कहने का बड़ा मधुर कारण है, कबीर कहते हैं कि प्रेम कभी पूरा नहीं होता,