भूतों का डेरा - 10

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बात यह तक थी कि हजारों लुटेरों ने शहर को घेर रखा था उसके घोड़ों के पैरों से जो धूल उठ रही थी और उनके नथुनों में जो भाप निकाल रही थी, उसने धरती मानो एक स्याही के पर्दे से ढ़क दिया था और आसमान में चमकता हुआ सूरज तक भी आंखों में ओझल हो गया था लुटेरों कि फोज की पंक्तियां इतनी घनी थी कि एक भुरा खरगोश भी उनके बीच से नहीं निकाल सकता था और न बाज उनके ऊपर से उड़कर जा सकता था शहर के अंदर से रोने पर कराहने की आवाजे आ रही थी और