पंचतन्मात्रा की साधना के बारे मे पिछले अध्यायों में हमने चर्चा की थी । आकर्षण के हेतु - रूप, रस , गंध , स्पर्श, शब्द ये पंच तन्मात्रा है रूप - इसकी ज्ञानेन्द्री नेत्र हैं । इसमें सौन्दर्य के प्रति आकर्षण आजाता है । शारीरिक सौन्दर्य जन्मजात हो या प्रसाधनो द्वारा हो आकर्षण का हेतु बन जाता है । अलंकार धारण व उद्वर्तनादि सौन्दर्य वृद्धि मे सहायक होते हैं । बाह्य रूप का दर्शन वैराग्य को राग मे बदल सकता है । अतः रूप देखने का कार्य नेत्रों द्वारा होता है । नेत्रों द्वारा ही भाव कुभाव बनते हैं ।