सौगन्ध--भाग(६)

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मनोज्ञा ने कलश लेकर गृह में प्रवेश किया एवं कलश को आँगन में रखकर वो शीघ्रता के संग अपने कक्ष में चली गई,वो अपने बिछौनें पर जाकर बैठ गई,उसकी आँखों से निरन्तर अश्रुधारा बह रही थी,उसने धीरे से मन में कहा.... क्षमा करना शंकर!मैं तुमसे प्रेम नहीं कर सकती,मैं विवश हूँ।। तभी एकाएक बाहर से मनोज्ञा को भूकालेश्वर जी ने पुकारा..... मनोज्ञा....मनोज्ञा पुत्री!कहाँ हो तुम? जी!अभी आई पिताश्री!इतना कहकर वो अपने कक्ष से निकलकर बाहर आई और भूकालेश्वर जी से पूछा।। जी!पिताश्री!कहिए क्या बात है?मनोज्ञा ने पूछा।। मैं ये कह रहा था पुत्री कि सम्पूर्ण राज्य में ये चर्चा हो