समय बीत रहा था और संग संग वसुन्धरा की प्रतीक्षा भी,उसे अभी भी विश्वास था कि कदाचित देवनारायण का हृदयपरिवर्तन हो जाएं और वो उसके पास लौट आएं,वसुन्धरा कभी अश्रु बहाती तो कभी विचलित हो उठती,ज्यों ज्यों उसके गर्भ में शिशु का आकार बड़ा हो रहा था त्यों त्यों उसकी चिन्ता बढ़ती जाती,वो कभी कभी अपने जीवन से निराश भी हो उठती थी,किन्तु जब शिशु उसके गर्भ में भाँती भाँति की गतियाँ करता तो वो प्रसन्नता से रो पड़ती,वो सोचती यदि इस समय देवनारायण उसके पास होता तो वो शिशु की गतिविधियों के विषय मेँ उससे चर्चा करती,वो भी कितना