रात्रि का दूसरा पहर,आकाश में तारों का समूह अपने धवल प्रकाश से धरती को प्रकाशित कर रहा है,चन्द्रमा की अठखेलियाँ अपनी चाँदनी से निरन्तर संचालित है,चन्द्रमा बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है एवं कभी किसी वृक्ष की ओट में छिप जाता है,वहीं एक वृक्ष के तले वसुन्धरा अपने प्रेमी देवनारायण की गोद में अपना सिर रखकर उससे वार्तालाप कर रही है,वो उससे कहती है.... देव!मैं सदैव सोचा करती थी कि मैं कभी किसी से प्रेम नहीं करूँगीं,मेरे पिताश्री जिससे भी मेरा विवाह करना चाहेगें तो मैं उसी से विवाह कर लूँगी,किन्तु अब मुझे भय लगता है कि