सेहरा में मैं और तू - 18

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( 18 )भिनसारे ही जो सूरज निकला, वो और दुनिया के लिए चाहे जैसा भी हो, कबीर के लिए तो ठंडी आतिश और दहकती बर्फ़ सरीखा था। ज़िंदगी की डोर जैसे फिर हाथों में आ गई थी। ज़िंदगी लौट आई थी बदन में।बराबर में रोहन बेसुध होकर सोया पड़ा था।कबीर को सोते हुए रोहन पर एक वात्सल्य भरा प्यार उमड़ आया।इसे देखो, कैसा ड्रामा किंग निकला। न जाने क्या- क्या बातें बना कर रात भर कमरे से गायब रहा और न जाने कैसे छोटे साहब को कबीर के कमरे में भेज दिया।यार ऐसे ही होते हैं जो यारियों के मकसद