दुनिया भर से आए लोगों का ये जमावड़ा देख कर अगली सुबह सबकी तबीयत खिल गई।अलग अलग परिधान, अलग अलग भाषाएं...फिर भी एक राह के राही होने का अहसास!लेकिन यहां आकर कबीर छोटे साहब को और भी मिस कर रहा था। वह वहीं थे, चाहे जब दिखाई भी दे जाते थे पर फिर भी न जाने क्यों कबीर को मन ही मन ऐसा लगता था कि एक बार उसे छोटे साहब से कहीं अकेले में मिलने का मौक़ा मिल जाए। उसके शरीर का पोर पोर जैसे उससे कहता था कि एक बार उनके शरीर को छूना ज़रूरी है। कबीर का