सेहरा में मैं और तू - 15

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(15 )यात्रा लंबी थी। उन्हें रास्ते में एक बार जहाज बदलना भी पड़ा। रास्ते में खाने या नाश्ते के लिए उन्हें जो कुछ भी परोसा गया था वो उन वस्तुओं का नाम तो नहीं जानते थे पर इतना उन्हें समझ में आ गया था कि उन्हें दिया गया सारा नाश्ता और खाना बेहद स्वादिष्ट और पौष्टिक था। उन्होंने बहुत चाव से उसे खाया।तरह तरह के पेय और फलों के रस भी उन्होंने पहली बार चखे।कबीर को केवल एक असुविधा ज़रूर हुई कि वो जहाज के भीतर बने वाशरूम में सहज महसूस नहीं करता था। एक अनजाना सा भय उसे लगता