सीता मै जिसे प्रारब्ध अशोक वाटिका में लाया:-जानकी के दृढ़ निश्चय को सुन रावण का मन भी क्रोध से डोलने लगा। पर सीता का विश्वास अनंत स्तंभ सा कठोर उसके मुख के तेज से शोभित होने लगा। क्या यही विश्वास का चरम था???? जो सीता की वाणी में उस अशोक वाटिका के कण कण में व्याप्त हो रहा था। जिसके भीतर समाहित हो सीता को ऐसा रक्षा कवच मिल गया था जिसके आगे तीनों लोको को जीत सकने वाले लंकेश का बल भी छोटा था!!!! वास्तव में नारी की गरिमा से ही शक्ति की गरिमा होती हो। और जहां नारी