एक रात को कोठरी खोल कर अम्मा फिर बाहर निकल गई। थोड़ी ही देर बाद छत पर से किसी की निगाह पड़ी। पिता ने दौड़ कर पकड़ लिया और एक रस्सी से बांध कर फिर से कोठरी में डाल दिया। अब अम्मा को पेशाब - पाखाने - गुसल के लिए भी कोठरी से बाहर नहीं निकाला जाता था। मैं अब अम्मा के पास जाने से डरता था। कभी - कभी खिड़की से चुपचाप देखता था जाकर। हरदम अम्मा के मैले कपड़ों में से बदबू आती रहती थी। अम्मा के तन पर मक्खियां भिनभिनाती रहती थीं। मैं देख नहीं पाता, रो