चरित्रहीन - (भाग-18)

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चरित्रहीन.......(भाग-18)रश्मि की बात सुन कर अच्छा लगा कि उसने विद्या और मेरे बारे में सोचा, शायद सच्चे दोस्त ऐसे ही होते हैं। कई दिनों से विद्या से बात नहीं की थी, वो भी शॉक में होगी यही सोच कर मैंने उसे ऑफिस में ही बुला लिया....वो मना कर रही थी पर रश्मि ने भी कहा तो वो 1 घंटे में हमारे पास पहुँच गयी थी, तब तक मैंने अपना कुछ काम निपटा लिया था.....हमारे काम में वैसे भी बहुत ज्यादा मारधाड़ नहीं होती तो सुकून सा रहता है काम में....वैसे भी काम एक बहाना था खुद को बिजी रखने के