चरित्रहीन - (भाग-14)

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चरित्रहीन........(भाग-14)जब भी हम सोचने लगते हैं कि अब हमारी लाइफ में सब सही हो गया है....तभी कुछ न कुछ ऐसा घट ही जाता है,जिससे लगने लगता है कि हमारे अभी बहुत से इम्तिहान बाकी हैं..... जो भगवान ने लेने हैं। कुछ ऐसा ही तो हुआ था विद्या के साथ, एक महीने में ही उसके मम्मी पापा दोनो ही चल बसे....पहले पापा फिर मम्मी। भाई बहनों के अपने परिवार थे, सब आए और सब क्रियाकर्म की अंतिम रीति रिवाज को निभा कर चले गए। भाई चाहता था कि दुकान और घर बेच कर वो उनके पास रहने आ जाए। बहनें तो