चरित्रहीन - (भाग-5)

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चरित्रहीन.....(भाग-5)अब मन परेशान हो या मुझे टेंशन थी, जो भी था वो नेचुरल ही था.....। मम्मी पापा जैसे ही निकले मैंने नीरज को फोन करके बता दिया। पंजाबी बाग से रानी बाग बहुत दूर तो था नहीं, पर गाड़ी उनको एक पार्क के सामने ही लगानी पड़ती और वहाँ से अंदर पैदल जाने में जो वक्त लगना था, वही तो था टेंशन का मुद्दा......नीरज बोल रहा था, "तुम टेंशन मत लो मैं बाहर चला जाऊँगा उन्हें घर नहीं ढूँढना पड़ेगा और कार भी पारिक करा दूँगा"! उसकी बात सुन कर थोड़ी तसल्ली को हुई थी....पर चिंता और बातों की भी