करोड़ों-करोड़ों बिजलियां - 3

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अध्याय 3 आधी सीढ़ियों में ऐसे ही खड़ी हो गई वैगई | बिरयानी और व्हिस्की की गंध हवा में जो आ रही थी उसको सूंघते हुए, एक क्षण के लिए सोचा | ‘जगह ठीक नहीं है वापस चली जाए ?’ ‘वापस चली जाए’ सोच को कार्य में परिणित करने एक सीढ़ी नीचे उतरी तभी सीढ़ियों के ऊपरसे गंजे सिर वालेने आवाज दिया | “कौन है ?” वैगई ने ऊपर देखा | तहमद और कुर्ते में वह पचास साल का आदमी दिखा | बाएं हाथ की अंगुली में बची हुई सिगरेट धीमा धुआँ छोड़ रही थी | वैगई दुबारा एक सीढ़ी