मां के स्वरूप की व्याख्या अनंत काल से चिरस्थाई जीवन्त के अनन्त सोपान है, है ही कमाल भी, सत्य, शाश्वत, चिरन्तर प्रखर वैचारिकी पर सोच पर बेलगाम विस्तार से परे रह कर भी! हर, समय, देश-काल परिस्थिति में विभिन्न भाषाओं की दीवारों में या परे भी अकथनिय सांझा विरासत से सांगोपांग, सानिध्य सत्कार और पोषण पर चिंतन किया गया है और लिखा भी गया है, संभवत यह कि है भावनाएं हैं, कभी कचौटति तो जो ह्दय की गहराईयों में लौ भी जगा दे, जो कागजों पर उकेरी कर जीने का प्रयास किया है। चित्रकार ने अपने ढंग से लाखो लाख