विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...! - 3

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पता किस धुन में थी की घर से इतनी दूर निकल आई और उसे पता ही नहीं चला, वहीं दूर एक घना और बहुत ही सुंदर सा पेड़ था, उस पेड़ के पीछे से एक जोड़ी आँखें अरू को ही देख रही थीं! अरु भी जैसे उसे देखने की चाह में उसकी ही ओर खींच जा रही हो! धींमें कदमों के साथ वो रेलवे फाटक की और बढ़ने लगी जैसे ही उस पार जानें को हुई के तभी दूर से आती ट्रेन की आवाज़ सुनाई दी और धीरे धीरे ट्रेन की आवाज़ तेज़ होने लगी और देखते ही देखते ट्रेन