मददगारों के बीच

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रास्ता बहुत ही ऊबड़ - खाबड़ था। बड़े - बड़े पत्थरों से तो फिर भी किसी तरह बचते - बचाते जिप्सी बढ़ रही थी किंतु जगह- जगह सूखे बबूलों की जो टहनियां पड़ी थीं उनके कांटे बड़े खतरनाक थे। मंजरी को रह - रह कर ऐसा लगता था कि कोई न कोई बड़ा कांटा अब चुभा, अब चुभा। गलती उसी की थी। जल्दी में आज पहली बार वह स्टेपनी भी गैरेज में पड़ी छोड़ आई थी। यदि गाड़ी पंक्चर हो जाती तो इस बियाबान जंगल में पड़े रहने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। उसका मन हुआ कि यहीं