"मुन्नू" का असली नाम ये नहीं था। लगभग बारह - चौदह बरस पहले बाईजी विधवा होकर अपनी ससुराल चांदगढ़ से अपने पीहर की इस कोठी में जब आई थीं, तो उन्हीं की ऊपरी साज - संभाल के लिए गांव से छह बरस का मुंतजर हुसैन भी ले आया गया था। मुंतजर के अब्बा के गुजरने के बाद उसकी अम्मी अपने नए नैन- मटक्कों के चलते उसे इन बाईजी की सेवा टहल के वास्ते छोड़ गई थी। नए पराए मर्द का क्या भरोसा, कैसे रखे अपनी बीवी के शौहर की औलाद को। और बस, मुंतजर बाईजी के पास आ गया। चांदगढ़