साठ के दशक में आई साधना और आशा पारेख के बीच शुरू से ही कांटे की टक्कर रही। जिस समय ये दोनों फ़िल्मों में आईं,तब टॉप पर वैजयंती माला और दूसरे नंबर पर माला सिन्हा का बोलबाला था। जल्दी ही ये पहले दो स्थान साधना और आशा पारेख को मिल गए। इन दोनों के मुक़ाबले का आलम ये था कि इनकी फ़िल्में शीर्षक तक में एक दूसरे की होड़ करती थीं। साधना की "लव इन शिमला" और आशा पारेख की "लव इन टोक्यो" तो आपको याद होगी ही। फिर साधना की "मेरे महबूब" और आशा पारेख की "मेरे सनम" को