एक भिखारी चिंतन

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एक भिखारी चिन्तन यशवन्त कोठारी ​आज मैं भिक्षावृत्ति पर चिन्तन करुगां।वास्तव मेंभिक्षा, भिखारी, हमारी संस्कृति के अंग है। पिछलेदिनों सरकार ने भिखारियों की धड-पकड़ की। उन्हेमन्दिरों, मसजिदो, गिरिजाघरों, चौराहो, होटलो केआस पास से खदेड़ा। मगर भारतीय संस्कृति के मारेभिखारी फिर वापस आकर जम गये। मैं ऐसे सैकड़ोभिखरियों को जानता हू जिनके भीख मांगने के ठीयेनिश्चित है। वे निश्चित समय पर निश्चित स्थानों परभीख मांगते है। कुछ के बैंक खाते में बड़ी बड़ी रकमेहै। कुछ ओटो, रिक्शा और टेक्सी तक में आते है।कुछ भिखारियों को घर वाले धन्धे पर छोड़ जाते हैऔर भिक्षा-समय समाप्त होने पर वापस ले जाते है।कुछ भिखारी