भक्ति माधुर्य - 5

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5 “सुतीक्ष्ण मुनि”अरण्यकाड का “सुतीक्ष्ण मुनि “ अत्यंत मधुर सर्वश्रेष्ठ प्रसंग, “ॠषि अगस्त्य कर शिष्य सुजाना .... निज आश्रम पर आनि करि पूजा विविध प्रकार ।“ जब मुनि सुतीक्ष्ण भगवान श्रीराम के उनकी कुटिया की ओर आगमन की खबर सुनते है, तो उनके दर्शन की अभिलाषा में वे अपनी सुधबुध खो बैठते हैं | वे राम से मिलने दौड़ पड़ते है। उनके मन में तरह तरह के विचार आते हैं | उनके मन में रह रहकर अनेक प्रकार के संदेह उठते हैं 'मैं प्रभु के दर्शन के अयोग्य हूं, मेरा मन मलिन है। मैं न तो भजन, न विधिवत पूजा,