Continues from the previous chapter…“बस इतनी सी बात थी।” कीर्ति ने अपनी कहानी ख़त्म कर के माधव और माधवी की और देखा, दोनों के आँखों से आंसू छलक रहे थे। माधव तो अपने आप को रोक ही नहीं पा रहा था।“इतना सब क्यों किया मेरे लिए?” माधव ने पूछा।“क्योंकि मैं तुझसे सच्चा प्यार करती थी, माधव! जरूरी नहीं है कि हम जिसे चाहते हो उसे हासिल कर ले वहीं प्यार की जीत हो। एक दूसरे को हासिल किए बिना भी सच्चा प्यार किया जा सकता है।”“हां तुझे तो भूत सवार था ना! त्याग की मूर्ति बनने का शोख़ था। मेरी