" तो आखिर में मैंने यही तय किया। तुम्हारे लिए मैंने वह फैसला लिया।" यह वह लब्ज़ थे जो वीर प्रताप के मुंह से निकले। जब वह जूही को डिनर के लिए बाहर ले गया था।उस दिन से लेकर अगले दिन शाम तक वीर प्रताप अपने कमरे से बाहर नहीं निकला । वीर प्रताप ने जो कहा उसके बारे में सोच जूही बेचैन सी हो रही थी। अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए। आखिरकार शाम के वक्त उसने वीर प्रताप के कमरे का दरवाजा खटखटाया। वीर प्रताप को पता था कि जूही दरवाजे के बाहर खड़ी है। फिर भी