सुलगता कमरा और ठिठुरती ज़िन्दगी

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The story - written 50 years ago in 1971सुलगता कमरा ओ' ठिठुरती ज़िंदगी....लेखिका- मंजु महिमा 'ऊफ!! कितनी गर्मी ....''..................''लग रहा है, जैसे सारा कमरा सुलग रहा है।' मुँह पर बहती हुई पसीने की बूंदों को उंगुली से पोंछते हुए, कमरे में छाए उस अटूट से मौन को पुन: तोड़ने के प्रयास में शिशिर ने कहा, ' काश! कि इस वक्त कमरे में एक कूलर होता।' कथन की प्रतिक्रिया स्वरूप एक हल्की सी व्यंगात्मक हँसी छूटी और अब तक रखी हुई सप्रयास चुप्पी टूट पड़ी सीमा की, ' भला कल्पना में भी कंजूसी? कूलर क्या यहाँ तो एयर