व्यग्यं के सलीब पर टंगे मसीही चेहरे

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व्यग्यं के सलीब पर टंगे मसीही चेहरे यशवन्त कोठारी व्यग्यं के क्षेत्र में हर लेखक, पत्रकार, कवि, कहानीकार अपना भाग्य आजमा रहा है। स्थिति ऐसी हे कि हर कोई व्यग्यं का सलीब लेकर चलने को तैयार हो रहा है। मामला राजधानी का हो या कस्बे का या महानगर का हर कोई व्यग्यं का माल ठेले पर रख कर गली गली निकल पड़ा है। व्यग्यं ले लो की आवाजे आती है और मोहल्ले वाले दरवाजे बन्द कर खिड़कियों से झांकने लग जाते है। लेकिन कुछ लोग अभी भी दुनिया को खिड़की के बजाय छत पर से देखना पसन्द करते