अधूरी रात

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इस कहानी को मैंने महसूस किया है और दुनिया ने तराशा होगा। मैं उस दिन बहुत खुश था की चलो कुछ तो नया हो रहा है। लेकिन था सब कुछ वैसे ही जैसे किसी बच्चे ने कुछ सुबह बिखेरा हो और वो अभी तक ऐसे ही बिखरा हो उसे कोई उठाने वाला न मिला हो। ऐसे ही मैं खुश था लेकिन मन बहुत अकुशल था। उसकी वजह कोई था। जिसने पहली बार मन की दहलीज पर आकर कुछ दस्तक दी और कुछ भी नही लेकिन उतना मेरे लिए अति हो गया जैसे किसी सांप का जहर मन मे भर गया