रिमझिम गिरे सावन - 2

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भाग (२) और बाबा उस नवयुवक को घर के भीतर ले आएं, फिर उसका ओवरकोट उतरवा कर बोले....     बाबूसाहब!, ये रही अँगीठी, आप हाथ पैर सेंक लीजिए, फिर बोले...  झुम्पा! जरा कटोरे में गरम दाल तो ले आ, बाबूसाहब का गला सिंक जाएगा, ठण्ड लग रही होगी।।  तब घरों में बिजली नहीं हुआ करती थी जैसे कि अभी मेरे खेत में नहीं है, लेकिन नीचे तो अब बिजली आ गई है, ऊपर पहाडों पर नहीं आई है, तब उस जमाने में दिए और लालटेन का सहारा लेना पड़ता था, लालटेन की रोशनी में मैने उसका चेहरा देखा, गोरा रंग,