इश्क फरामोश - 3

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3. बेटा होता तो शाम को जब आसिफ दफ्तर से आया तब तक किरण खुद को कुछ हद तक संभाल चुकी थी और साथ ही मन में वे सवाल भी तय कर चुकी थी जो उसे आसिफ से पूछने थे. हालाँकि उसे अंदाज़ा भी था कि वो उनका क्या जवाब देगा, फिर भी मन की तसल्ली के लिए ये कवायद ज़रूरी थी. सुजाता का अगला फ़ोन आये और वह विस्तार से बात करे उससे पहले उसे जान लेना था कि वह किस ज़मीन पर खडी है. उसके पैरों के नीचे दलदल है या धरती या सिर्फ बादल; जो भ्रम तो