मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(५)

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उपेन्द्र बिना देर किए हुए दोनों बेटियों को संगीत कला केन्द्र में प्रभातसिंह के साथ भरती करवाने ले गया,प्रभातसिंह की चचेरी बहन ही संगीत कला केन्द्र को चलातीं थीं इसलिए एडमिशन मे कोई दिक्कत ना हुई,बच्चियों के संगीत केन्द्र चले जाने से अब उपेन्द्र और महुआ की परेशानी कुछ कम हो गई थी,फिर से उनका जीवन सुचारू रूप से चलने लगा, इसी बीच जब उपेन्द्र के पास बेटियों की जिम्मेदारी खतम हो गई तो उसने सोचा कोई काम शुरू किया जाए,वो पढ़ा लिखा तो था नहीं,इसलिए उसने एक डेरी खोलने का सोचा,शहर से बाहर उसने कुछ जमीन और कुछ गाय