भाग- दौड़ शुरू हो गई। साजिद, सिद्धांत और मनन ये अच्छी तरह जानते थे कि उनके मित्र आगोश की मूर्ति अपने हॉस्पिटल परिसर में लगाने में उसके माता- पिता ख़र्च की परवाह तो बिल्कुल ही नहीं करेंगे। तीनों ने जल्दी से जल्दी इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कमर कस ली। जयपुर शहर वैसे भी मूर्तिकला के लिए दुनिया भर में विख्यात रहा ही था, अतः उन्होंने जयपुर के नामचीन मूर्तिकारों से संपर्क साधना शुरू कर दिया। यहां के शिल्पकारों ने दुनिया के कई मंदिरों, स्मारकों व अन्य स्मृति परिसरों के लिए एक से एक नायाब शिल्प गढ़