टापुओं पर पिकनिक - 82

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डॉक्टर साहब अर्थात दिवंगत आगोश के पिता का अब ज़्यादा समय दिल्ली में ही बीतता था। उनकी पत्नी भी अब घर में अकेली रह जाने के कारण ज़्यादातर उनके साथ ही रहती थीं। यहां का उनका लंबा- चौड़ा बंगला अक्सर ख़ाली ही पड़ा रहता। उनकी क्लीनिक में भी अब काफ़ी कुछ बदलाव आ गए थे। केवल उनकी ही नहीं, बल्कि शहर के बाक़ी अधिकांश निजी हॉस्पिटल्स, नर्सिंग होम्स और क्लीनिक भी अब अधिकतर इसी ढर्रे पर चल पड़े थे। वहां नए- नए नौसिखिया डॉक्टर्स बैठते किंतु विशेषज्ञों के नाम पर ढेर सारे प्रतिष्ठित पुराने डॉक्टर्स की नाम पट्टिका लगी रहती।