आगोश और तेन का काम धड़ल्ले से चल पड़ा था। अब आगोश का एक पैर भारत में रहता और दूसरा जापान में। वह आता- जाता रहता।जब वो भारत आता तो आने से पहले मधुरिमा से एक बार ये ज़रूर पूछता था कि तनिष्मा को उसके नाना- नानी से मिलवाने ले चलना है क्या?मधुरिमा ये कह कर टाल जाती कि पहले इसे नाना- नानी बोलना सिखा दूं, फ़िर चलेंगे।तेन मुस्करा कर रह जाता।उन्होंने कई टूर सफ़लता से संपन्न करवा लिए थे। वे किसी भी एक सुंदर सी जगह को चुनते और तब महंगे विज्ञापनों के ज़रिए लोगों को वहां की सैर