हाँ ...हाँ ..मैं लड़की ही हूँ

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बचपन में अपने तेज स्वभाव के कारण मैं मोहल्ले के सारे लड़के-लड़कियों की नेत्री थी |माँ-बाप,भाई-बहन ,रिश्तेदार कोई भी मुझे दबा नहीं पाते थे |मुझे पेड़ों पर चढ़ना अच्छा लगता |पतली-पतली डालियों पर गिलहरी की तरह फुर्ती से चढ़ जाती और कच्चे-पक्के फलों का ढेर लगा देती |शिकायत आने पर पिता के हाथों मार भी खाती ,पर दूसरे ही दिन फिर वही काम ....|माँ टोकती –लड़कियां पेड़ पर नहीं चढ़तीं ,वरना उनमें लड़कों के गुण आ जाते हैं | मैं चिढ़ जाती –आखिर लड़कों को पेड़ पर चढ़ने की मनाही क्यों नहीं होती ? माँ कहती-पेड़ पुरूष होते हैं इसलिए