बैंगन - 16

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इस बार मैं इस शहर में पहली बार आने वाला अकेला इंसान नहीं था। फूल वाला वही युवक तन्मय मुझे लेने स्टेशन पर आया था। तन्मय मुझे तांगे में बैठा कर सीधा अपने घर ले गया। इस तांगे की भी एक रोचक कहानी थी। तन्मय और उसके पिता यहां एक मंदिर के अहाते में बने छोटी- छोटी दो कोठरियों के मकान में रहते थे। ये आपस में सटी हुई कोठरियां बरसों पहले कभी इसी इरादे से मंदिर के पिछवाड़े बनवाई गई होंगी कि ये मंदिर की रखवाली करने वाले परिवार को रहने के लिए दी जा सकें। लेकिन अब ये