आंखों ही आंखों में

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आज फिर आंख खुलते ही आंखों के समक्ष उभरी एक जोड़ी जीवंत सी आंखें।" अरे, आप यहां, किसके लिए। मेरी तो प्रतीक्षा कर नहीं सकती आप।"वही गहरी, हृदय को बेंधती आंखें और हल्की स्मित से व्यंग्यात्मक वक्र हुए अधर, जिससे परिचित थी वो पिछले कई दशक से। स्कूल का सबसे शरारती छात्र। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा, जिस दिन किसी अभिभावक का शिकायती पत्र नहीं आता हो प्राचार्य महोदय के पास उसके लिए। फिर स्कूल वाले भैया कक्षा से बुला कर ले जाते उसे प्रिंसिपल साहब के ऑफिस में। हम सब मित्र डरे प्रतीक्षा करते कि आज खैर