क्या कहूं...भाग - १

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पतझड़ का महीना था। कभी कभी हवाएं बहती तो ठंड से तन सिहर उठता। रोज की तरह विवान अपने छत पर सूर्योदय देखने के लिए आया था। आज सूर्योदय तो हो चुका था पर उसकी आंखें नीम के पेड़ पर जा ठहरी। जोर हवा चलने से कभी कभी उसके पत्ते झड़ रहे थे। एकटक बहुत देर तक वो देखते रहा। उसके चेहरे पर उदासी का भाव झलक रहा था। पत्ते तो वापस वसंत में आ जाएंगे पर गुजरा दिन, गुजरे लोग वापस नहीं आएंगे। तभी उसकी मां काॅफी लेकर आई। आज इतनी देर छत पर....तभी उसकी नजर विवान के उदास