एक दिन, हजार रातें  

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ट्रेन चलने से काफी पहले आ गई थी वो स्टेशन। हमेशा के लिए मुंबई छोड़ रही थी। इसलिए सामान भी ज्यादा था। तीन बड़े सूटकेस। दो गत्ते के बक्से। बहुत कुछ तो वह मुंबई में ही छोड़ कर जा रही थी। सबसे बड़ी चीज, अपना सपना… सपना तो वह अब रातों को सोते समय भी नहीं देखती। कई दिनों से आंखों से नींद गायब है। मुंबई-दिल्ली राजधानी में नीचे की बर्थ थी उसकी। खिड़की के पास वह बैठी रही। साथ के यात्री आ गए। ट्रेन चल पड़ी, पर उसने चेहरा घुमा कर किसी की तरफ नहीं देखा। मुंबई सेंट्रल,