प्रकाश को ये भी नहीं रुच रहा था कि अब वो कुछ भी न करके केवल आराम ही आराम करें। कुछ वर्ष तक भारतीय बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष रहने के बाद इस विलक्षण बहुमुखी प्रतिभा संपन्न खिलाड़ी को ऐसा महसूस हुआ कि नई पीढ़ी के युवकों में खेल के लिए ज़ुनून तो हमेशा से रहता ही है, हौसलों की कमी भी नहीं रहती। लेकिन फ़िर भी उन्हें एक मार्गदर्शन की दरकार तो हमेशा रहती ही है। ख़ुद उनके मामले में तो उन्हें ऐसा मार्गदर्शन अपने पिता से ही मिलता रहा था क्योंकि पिता भी बैडमिंटन से ही जुड़े हुए थे