कामनाओं के नशेमन - 18

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कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 18 ‘‘..मैं कुछ सोच नहीं पा रहा हूँ हनी।‘‘ अमल ने एक गहरी सांस खींच कर कहा। ‘‘...सिर्फ मन सोचता है...यह शरीर नहीं।‘‘ कहते हुए मोहिनी ने उसे बांहों में भर लिया और बोली- ‘‘..मैं यह भी महसूस करती हूँ कि यदि बेला यह सब नहीं सह पाएगी तो मैं यहाँ से वापस चली जाऊँगी।‘‘ अंततः...इन क्षणों में क्या टूटा क्या जुड़ा...इसका साक्षी सिर्फ वहाँ नीम अंधेरा ही रह गया। ////////// अमल वापस बेला के कमरे में आ कर, बेला के बेड के पास आए तो बेला ने बड़े अजीब अंदाज में पूछा था-‘‘...कहाँ