यादों के उजाले - 1

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यादों के उजाले लाजपत राय गर्ग (1) आज प्रह्लाद को मन मारकर कार्यालय आना पड़ा था। उसके बॉस का सख़्त आदेश न होता तो इस समय वह आने वाली मीटिंग की फाइल तैयार करने की बजाय अपनी पत्नी रेणुका के पास अस्पताल में होता। आज सुबह जब वह उठा तो रेणुका को स्नानादि से निवृत्त हुआ देखकर उसने पूछा - ‘आज इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गयी हो?’ तो उसने उत्तर दिया था - ‘आप भी जल्दी से फ़ारिग हो लो। इतने मैं नाश्ता और दोपहर का खाना बना लेती हूँ। पिछले एक पहर से रह-रहकर ‘दर्द’ उठ रहे हैं।