सुधीर की आवाज़ पड़ गयी थी बाउजी के कानों में. उन्हें लगा, लौट जायें, लेकिन फिर आ गये टेबल पर, अपनी कुरसी के पास. उनकी कुरसी पर गुड्डू, सुधीर का बेटा बैठा था, सुधीर ने फौरन दूसरी कुरसी की ओर इशारा किया, बाउजी उसके इशारे पर दूसरी कुर्सी खिसका बैठ गये. वैसे आदत तो उन्हें अपनी उसी कुर्सी पर बैठने की है. अब आपको लगेगा कि भई इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? कहीं भी बैठ गये? लेकिन सबकी आदत होती है न अपनी एक निश्चित जगह पर बैठने की! फिर बाउजी तो सदियों से बैठते चले आ रहे उस जगह.....!