और आत्माराम मिल गए......

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आप संज्ञा शून्य से हो जाते हैं, जब कोई अपना बहुत दूर चला जाता है, अनंत की यात्रा पर,जहाँ से वो इस रूप में कभी वापस नहीं आएगा. आप उससे कभी मिल नहीं पायेंगे, उसे देख नहीं पायेंगे, उसे छू नहीं पाएंगे, उसे सुन नहीं पाएंगे .....सब कुछ होगा बस वो नहीं होगा.....एक ऐसी बेचैनी .....जो आप की जान ले रही होती है और आप ज़िन्दा होने का अभिनय कर रहे होते हैं ...... जब किसी निकटस्थ का ये अंतिम प्रयाण चल रहा होता है तब अनेक विधियाँ संपन्न होती हैं. आप यांत्रिक भाव से उन्हें करते जाते हैं. कब,