भाग्य-दुर्भाग्य

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महीनों से देख रही थी कि घर में एक एक पैसा सोच समझ कर खर्च किया जाता।कोई भी वस्तु बर्बाद नहीं की जातीरात की रोटियाँ बच जातीं तो उन्हें फेंका नहीं जाता गर्म करके एक एक सबको दी जाती।कई बार सोचती कि कितने कंजूस लोग मिले हैं मुझे एक मेरी चचेरी बहिन है जो अपने घर की अमीरी की कितनी बढ़ाई करती एक मेरी किस्मत में ये कंजूस लोग।ये सोचते सोचते उसकी आँख लग गई और सुबह उठी तो उसे महसूस हुआ कि उसे हल्का सा बुखार है।सुबह उठने पर उसके पति सचिन ने देखा कि अरुणा आज उठी नहीं